ख्वाहिशों की मौत-8
आ गए लाला........ बासुंदी भी लाए होंगे....... तब तो......और खाना तो खाओगे नहीं। बहन ने जो बड़े चाव से खिलाया है। जाना ही था तो हमें भी ले चलते। हम भी नैनिहाल घुम आते I तुम्हारी बहन का घर और जिगरी यार भी है तो, हमारे भी कुछ लगते होगे।
अरे हां भाई लगते हैं, पर तुम्हें कैसे पता.... कि इस डब्बे में बासुंदी ही है, और हम तुम्हारे घर गए थे। पहले यह बताओ और दूसरी बात हमको लाला मत कहा करो हमको पूरा गांव चौधरी बुलाता है। एक तुम ही हो जो इतने सालों में भी हमें लाला से चौधरी बोलना न सीखें, बीच में चौधरी ने ठोकते हुए कहा, तभी कैकई मुस्कुराते हुए बोली.......... देखो पहली बात तो हम पूरी जिंदगी तुम्हें लाला ही कहेंगे, क्योंकि तुम सौदा कर हमें ब्याह लाए हो। अगर चार क्लास ज्यादा पढ़ लेते तो तुम्हारा क्या बिगड़ जाता। क्या हम भागे जा रहे थे?????
मानते हैं कि लक्ष्मी हमारी सहेली है। इसका मतलब यह नहीं कि उसका ब्याह हो गया तो हमारा भी मन हो, या फिर यह कहे कि तुम्हें भरोसा नहीं था कि हम पड़ोस के गांव वाले मास्टर से ब्याह कर लेते। भागते तो नहीं यह तो पक्का था। फिर इतना समझाने पर भी क्यों ना माने छोटी-छोटी बोलकर ब्याह ले आए, और अब छोटी गोद में थी। हम तो क्या खाक पढ़ लेते सारी पढ़ाई चौपट कर दी हमारी.... और रही रही बात हमें कैसे मालूम तो जनाब चौधरी साहब आप भूल रहे हैं कि यह डिब्बा जिसमें आप बासुंदी भर कर लाए हैं। वह आपकी ही मैडम को अर्थात "मुझे" जिसने पूरे जिला में प्रथम स्थान प्राप्त किया था।
इसी के उपहार स्वरूप आपके पिताजी अर्थात मेरे ससुर जी जो स्कूल के हेड मास्टर थे। उन्होंने मुझे दिया था.............. समझ गए...... एक आप ही हो जो नहीं समझ पाए। आज पढ़ लेते ना तो उसी स्कूल में हम भी हेड मास्टर होते हैं, और यह तो शुक्र मानो कि घर में अंदर आने दिया। आपको दोस्त के साथ खेत में चखना खाते बाबू जी ने देख लिया था। जरा देख लिया करो, आसपास से कौन आ रहा है। उन्होंने तो सिर्फ इतना ही बताया कि आप भाई के साथ खेत में दिखे थे। बाकी मैं सब समझ गई... और डिब्बा मेरे हाथ में दे दो, और सुनो काम की बात तुम्हारे बड़े फूफा जी के बेटे की बेटी डॉक्टरी पड़ रही है, सुनने में आया....... देखो मैं पढ़ाई तो नहीं छुड़ाना चाहती, लेकिन पढ़ी-लिखी लड़की मिलती नहीं है और अपना दिनेश भी अब अफसर हो गया है। अब तो यदि अगर आप चाहो तो बाबू जी से बात कर लो। यह उनकी राय हैं, फिर देखो बना रिश्ता जोड़ के रखने में क्या बिगड़ता चौधरी मुस्कुराते हुए अच्छा.....अगर हम ऐसा सोचे तो गलत और तुम क्या कर रहे हो। हम भी तो रिश्ता जोड़ कर ही रखने को कहा था, तब तो ना माने थे, बाबूजी... और आज खुद की सलाह दे रहे हैं। वाह रे दिनेश क्या नसीब पाया है काश इतना प्यार हमें भी कोई कर लेता। कोई तो सोचता हमारे बारे में........बढ़बढ़ाता हुआ चौधरी बरामदे की ओर जहां उसके बाबूजी थे, चला गया..... आ गए...... कहां गए थे जनाब..... मिल आए... बेटा ?? मानता हूं, बहुत खुले विचारों वाले हो पर थोड़ी हमारी भी बात मान लिया करो। चौधरी साहब का मान तो नहीं घट जाएगा ना कि, आज भी चौधरी अपने पिता की बात मानता I कहीं ऐसा तो नहीं है जैसा सोचा लेकिन अबकी बार यदि जाना हो तो कुछ ना सही थोड़ी मिठाई जरूर लेते जाना। इतना तो कर दोगे ना मेरे लिए बेटी के घर खाली हाथ नहीं जाते। खैर छोड़ो जानता हूं तुम्हारी दोस्ती लाजवाब है। लेकिन अब तो थोड़ा ख्याल रखो। आजकल में बच्चों की शादी हो जाएगी और इनको देखो आज भी खेतोंकी सैर में लगे हैं। क्या लगता है कोई नहीं देखता तुम्हें या कोई कुछ बोल नहीं सकता। तुम होंगे गांव के चौधरी, लेकिन यह मत भूलना बाप हूं मैं तुम्हारा.. दोबारा याद रखना, चौधरी आज भी वही बचपन की तरह दोनों हाथ बांधे मुस्कुराते हुए अपने पिता के सामने इतनी मासूमियत लिए खड़ा था जिसे देख पिता को कभी तेज क्रोध आता तो, कभी अपने आप पर फक्र भी महसूस होता क्योंकि इस उम्र में आकर बच्चे अक्सर सुनते ही कहां है I पिता की डांट को अपना अपमान समझते हैं । लेकिन जो चौधरी पूरे गांव के लिए मसीहा हैं, वह आज भी पिता की डांट को आशीर्वाद और गांव की सेवा में ही अपना कर्म समझता है। उसे कभी अपने मित्र( दिनेश के पिता) के अलावा किसी के साथ भी ज्यादा वक्त गुजारते देख नहीं देखा।
क्रमशः.....
Rupesh Kumar
19-Dec-2023 09:20 PM
V nice
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Shnaya
19-Dec-2023 11:16 AM
Nice one
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Alka jain
19-Dec-2023 10:46 AM
Nyc
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